Friday, September 8, 2017

वो सपना जिस की हलकों मे बहुत आराम आता है

वो सपना, जिस की हलकों मे, बहुत आराम आता है
छलक कर ओंठ से, नगमों का बन, पैगाम आता है

हमें लगता नहीं था, दिल कभी पंचर भी होगा पर
मगर आफसोस की, इस बात का इलजाम आता है

हमारी हर खता भूली, इनायत राज़दारी की
शहर के कुछ शरीफों में, हमारा नाम आता है

शराफत है बड़ी इक चीज़, वाइज़ ने सिखाया था
मगर उम्र-ए-बगावत में, कहाँ सब काम आता है

सुनो अब सोचना कुछ नहीं, बाकी रहा है पर
कलपते चाह को, तुम से सटा, आराम आता है

बहुत छिपते-छिपाते, चल रहा है, सब यहाँ अबतक
नतीजा है, हमारे नाम में, बेनाम आता है
~ सूफ़ी बेनाम

१२२२ - १२२२ - १२२२ - १२२२


 


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