Thursday, July 13, 2017

आओ ज़रा ज़रा सा तो हम तुम मिला करें

वज़्न--221 2121 1221 212
गिरह :
आओ ज़रा ज़रा सा तो हम तुम मिला करें
मुमकिन है कोई याद पुरानी निकल पडे
मतला :
सब लूटने लगे थे कि दानी निकल पडे
मजबूरियों के साथ जवानी निकल पडे

थोड़ा कुरेद लो जो भी नम सा मिला करे
शायद किसी बूढे से जवानी निकल पडे

तुम बेमिसाल नाज़ हो, बेहद हसीन हो
सब से मिला करो कि रवानी निकल पडे

वो कैद कर के ले गयी दो पल हयात से
शायद वही थे जी गये फानी निकल पडे

वो तेज़ तो बहुत है, मगर है शरीफ वो
ये सोचते ही आँख से पानी निकल पडे

हम आप के करीब भी आये थे इस लिये
कि शेर दो हों साथ तो, जानी, निकल पडे

इक शेर तुम कहो तो, कभी शेर हम कहे
इन दूरियों में रात सुहानी निकल पडे

न मुमकिनी की बात न, मुमकिन किया करें
बेनाम की सफा कि कहानी निकल पडे

- सूफी बेनाम

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