Monday, July 24, 2017

खुद न बनना रासता तुम, राह बनके देखना

२१२२-२१२२-२१२२-२१२ 

दिन पिघलते आसमां में , रंग भरके देखना
साथ में हमसाज़ के, हर शाम ढलते देखना

मंज़िलों का शौक रखके, दूर तक चल तो सही
रासते हों तंग, तो संग तेज़ चलके देखना

यार की दिलदारियाँ, दमभर निभाना पर सुनो
खुद न बनना रासता तुम, राह बनके देखना

गर शुआओं पे, हो उसकी, दिल की धड़कन महरबां
तो सुनो, उस आँख का काजल संभलके देखना

जिन के लब हों राज़दानी उनसे ही मिल ते रहो
आरज़ू जिसकी दराती, उनसे कटके देखना

हाय! ये तन्हाईयाँ, रहती सभी बेनाम क्यों
कर उमर को आशना, खुद तू पलटते देखना 

~ सूफ़ी बेनाम


 


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