Wednesday, July 5, 2017

बन काव्य खिल जावो

प्रस्तावित ही सही पर
अब मन-कानन में कूजन है, नव रस है
मन संवाद की झलकी भरो
बन काव्य खिल जावो

प्रस्तावित ही सही पर
अब डालों पे, नव पल्लव की चादर है
निगाहों में लिये कोहराम
वसंत श्रृंगार को आवो

प्रस्तावित ही सही पर
अब निद्रा को बोध मंद स्पर्शों का है
चलो शीत की ओढ़न बनो
रतिज स्वप्न-प्रबोध हो जावो

प्रस्तावित ही सही पर
अब अज्ञ-ज्वार से धुलकर मन-भू उर्वर है
जगो तृष्णा, जलो मुझमें
लावण्य प्रतिकार बन आवो


~ सूफ़ी बेनाम

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