Friday, July 28, 2017

कभी तुम साथ मेरे घर तो आना

1222/1222/122

कभी तुम साथ मेरे घर तो आना
हमारा घर भी तुमको घर लगेगा

अगर आओगे तुम कमरे में भीतर
तो शायर-मन, तुमे तलघर लगेगा

जहाँ है खाट औ उलझा सा बिस्तर
वहीं पे फिर ग़ज़ल दफ्तर लगेगा

पता कागज़ को रहता है तुमारा
नशा बस स्याही को पीकर लगेगा

सुनो तुम बैठना आराम करवट
अभी किस्सों में ये दिलतर लगेगा

अगरचे हाथ मेरा छू गया हो
तो शायद तुम को थोड़ा डर लगेगा

ये आलम आ ही जाता है इनायत
यूँ मौका ज़िन्दगी कमतर लगेगा

तग़ाफ़ुल शेर पे है शेर कहना
उफनता चाह का तेवर लगेगा

मुक़र्रर औ मुक़र्रर दाद रौनक
रवानी फासला खोकर लगेगा

तसव्वुर में कई जो ख्वाइशें है
ये अबतक उन से तो हटकर लगेगा

अगरचे गुदगुदी तुमने करी तो
चुनाँचे तब यहाँ बिस्तर लगेगा

~ सूफ़ी बेनाम



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