Saturday, July 15, 2017

क्या कर लोगे आगे जा कर

नाम अधूरा तेरा है पर
मेरी स्याही लिखती बहकर

कब थकता है रुकता है कब
जो जलता है अपने भीतर

अन्दर जब सोता फूटेगा
पीछे मत हटना घबराकर

सब कुछ फैला-फैला सा है
दिन जब बीत गया है थक कर

गर बादल फूट के बरसे तो
मुझमे घर करना चिपकाकर

गर दोस्त पुराना मिल जाये
बाहों को भरना फैलाकर

तुम आते हो मुझसे मिलने
मैं बिखरा हूँ मन के अन्दर

वक्त नहीं है पल्टा पीछे
क्या कर लोगे आगे जा कर

राधा की कनचन काया में
ज़िन्दा मीरा सी वो लुटकर

- सूफी बेनाम



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