Monday, May 1, 2017

दिल दिल नहीं है खेल है तेरी दुकान में

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लूटा गया है जान हमें इस जहान में
दिल दिल नहीं है खेल है तेरी दुकान में

लब को नहीं ज़ुबान है, रहती जो दिल को है
धड़कन का है रिवाज़ मगर इम्तहान में

हमको पता है जान बहुत बेवफा है तू
हम-हम रहे, नसीब रहा, इस थकान में

इस आग के नसीब से हमको नहीं गिला
खुद बुझने आ गयी है यहाँ के उफान में

तेरी तलाश प्यार है मेरी तलाश तू
महसूस कर ज़मीर ज़रा रूह जान में

इक बार जो मिले तो कभी फिर नहीं मिले
हमको ज़रा जगह भी दो इस दरमियान में

कहदो तो छोड़ देंगे ग़ज़ल को दवात को
या फिर कहो तो सोंक लें तुमको दिवान में

हर रोज़ राज़ आप के खुलने लगे हैं अब
हर दिन जली है जान ग़ज़ब इस बयान में

~ सूफ़ी बेनाम


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