Thursday, May 5, 2016

ख्यालों के जंगल

रात अपने ख्यालों के
जंगल में जाना
कभी तो
रास्ते किनारे
झील पे झुके पेड़ से
एक शरारत तोड़ लाना

फ़र्द में अधूरी
मिसरों के विलय में उलझी
ग़ज़ल की डालियों में चंद
हर्फों के
कांटे बिखरे पड़े हैं

पाँव  की कोरें में
चुभ गए अगर राज़ दोस्ती के
तो यादों की छाल से रिसते द्रव्य की
दो बूँद छुआना
और आगे बढ़ते जाना

याद है
वो पिछले साल
जब बारिश ज़्यादा हुई थी
और दो शामें चट्टानों पर
नंगे पैर दौड़ पड़ी थीं
वो सब तुमने एक रूमाल पे
काढ ली थीं

आज  उसी
रूमाल का एक कोना
वक्त पर काम आया है मेरे
प्यार भी इंसान को कितना सिखाता है
दोस्ती का सफर रूमान हो
तो दूर तक जाता है

~ सूफी बेनाम


फ़र्द - sheet of paper/spread sheet.



( picture courtesy : Vivek Banerjee) 

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